लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

सोपान
(Hierarchy)

सामान्यतया, 'सोपान' शब्द का उपयोग सामाजिक इकाइयों को श्रेष्ठ और कमजोर या उच्च और निम्न के रूप में संगठित करने के लिये किया जाता है। प्रजाति और जाति प्राकृतिक ( स्वाभाविक) सोपान समझे जाते हैं, क्योंकि दोनों में अपरिवर्तनकारी (स्थिर) वंशानुगत सदस्यता पर आधारित, अन्तः वैवाहिक समूहों को व्यवस्थित किया जाता है। अन्तः विवाह के आधार पर जाति और प्रजाति दोनों की कार्यप्रणाली भी एक समान नहीं है। सोपान में श्रेणीकरण या व्यवस्थापन के सिद्धान्त के रूप में स्तरीकरण, विभेदीकरण, वर्ग और शक्ति जैसे शब्दों की तुलना में कहीं अधिक कठोरता और स्थिरता परिलक्षित होती है।

सोपान के बारे में लुई डूमॉ का दृष्टिकोण

प्रसिद्ध फ्रांसीसी समाजशास्त्री लुई डूमाँ ने भारत की जाति व्यवस्था को स्तरीकरण की कठोर व स्थिर व्यवस्था बताते हुए, सोपान की अवधारणा को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया है। डूमों की बहुचर्चित पुस्तक - होमो हेरार्किकस, शाब्दिक अर्थ में, 'हामो एक्वालिस' के विपरीत है। दूसरे शब्दों में, 'सोपान' द्वारा भारत को चित्रित किया जाता है, और फ्रांस (या यूरोप) को 'समानता' के चक्षु से देखा जाता है। डूमों के लिये जाति व्यवस्था एक विशिष्ट प्रकार की असमानता का प्रतिनिधित्व करती है, जिसको विचारों और मूल्यों द्वारा समझा जाता है। डूमों की जाति व्यवस्था की व्याख्या का मुख्य बिन्दु पवित्र और अपवित्र ( दो तरफा विरोध) के बीच आधारभूत विरोध है, लेकिन विरोध निरंकुश नहीं है, क्योंकि पवित्र में अपवित्र समाहित है और दोनों एक साथ जाति व्यवस्था की जैविकीय कड़ियाँ हैं।

डूमॉ के होमो हैरार्किकस से पहले भी सी० बूगली ने जाति व्यवस्था को सोपानीय रूप में व्यवस्थित वंशानुगत समूहों, पृथकता और अन्तर्निर्भरता के सन्दर्भ में परिभाषित किया है। वास्तव में विवेकता, पृथकता, ऊपर-नीचे की जाति सोपान व्यवस्था और अन्तर्निर्भरता को जाति सोपान के सिद्धान्त और अभ्यास (व्यवहार) के तत्वों के रूप में एक साथ देखा जा सकता है। इस तरह जाति सोपान में पवित्र और अपवित्र के बीच विरोध के सिद्धान्त के साथ, पारस्परिक तौर पर समाहित 'सिद्धान्त' पाये जाते हैं। परन्तु समस्या तब उठती है, जब डूमॉ इसको (पवित्र और अपवित्र के विभाजन का) 'एक अकेला सच्चा सिद्धान्त' मानते हैं। यह विरोध डूमों के अनुसार, पुरुषों और स्त्रियों, भोजन और कपड़े, व्यवसाय और श्रम विभाजन आदि का विशेष लक्षण है। अब प्रश्न यह है कि किस सीमा तक ऐतिहासिक दृष्टि से और आज के परिप्रेक्ष्य में, पवित्र और अपवित्र के बीच में विरोध का सिद्धान्त भारतीय समाज में पाया जाता है।

क्रिस स्माजे ने सोपान की अवधारणा को स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया है। स्माजे ने ' श्रेणीकारी सोपानों' और 'समाहित सोपानों' का उल्लेख किया है। प्रथम का अर्थ है कि जहाँ पर बहस का समग्र पूर्णतः दो या दो से अधिक भिन्न वर्गों में उच्च और निम्न इकाइयों में विभाजित है। इस प्रकार, यह 'सकर्मक सोपानीकरण' होता है। मोटे तौर पर ऐसी अभियोजना प्रजातीय सोपान, स्त्री भेद और वर्ग असमानता की यूरो-अमेरिकन विचारधाओं पर लागू होती है। दूसरी अभियोजना के अन्तर्गत श्रेणीकृत इकाइयाँ बहस के समग्र के साथ अस्तित्व में रहती हैं, अर्थात् उच्च इकाई में निम्न इकाई समाहित होती है। पवित्र और अपवित्र की एक प्रकार से 'एकता' होती है। उदाहरण के लिये, भारत की जाति व्यवस्था में ऐसा ही है। एक भिन्न सन्दर्भ में कार्ल मार्क्स ने 'विरोधियों की एकता' के बारे में कहा है। मार्क्स के अनुसार, पूँजीपति और सर्वहारा वर्ग उद्योग में एक साथ कार्य करते हैं, जबकि उनके उद्देश्य और कार्य भिन्न हैं। दूसरे सन्दर्भ में सह-अस्तित्व या विरोधाभास, उच्चतर स्तर की इकाई में समाहित हो जाता है। इसलिये सोपान के स्तर को, जहाँ पर वह स्थित है, परिभाषित करना आवश्यक है।

यहाँ पर, क्लाड लेवी स्ट्रास के 'दोहरे संगठनों के विचार का उल्लेख किया जा सकता है, जिसकी डूमों के सोपान के विश्लेषण से कुछ समानता है। मोटे तौर पर श्रेणीकरण का सोपान लेवी-स्ट्रा के रेखाकृत' संगठन की अवधारणा जैसा है और समाहित सोपान की धारणा लेवी-स्ट्रा के 'केन्द्रिक' संगठन के विचार के समान है। रेखीय संरचनाओं में समानता दिखाई दे सकती है, जहाँ तक उनके दो तत्व एक-दूसरे के पूरक समझे जाते हैं, परन्तु वे असमान होते हैं। इसके विपरीत केन्द्रिक संरचनायें सदैव असमान होती हैं, क्योंकि वे एक श्रेष्ठ उच्चतर केन्द्रीय बिन्दु के चारों ओर व्यवस्थित की जाती हैं, या उसमें से उभरती हैं। प्रश्न यह है कि भारत की जातियों के सोपान को समझने और विश्लेषण के लिये डूमॉ और लेवी स्ट्रास द्वारा प्रतिपादित विचार या प्रारूप कैसे उपयोगी हैं।

स्माजे ने दोनों मॉडलों की सीमाओं के बारे में संकेत दिये हैं। स्माजे ने जाति सम्बन्धों के " घुमावदार" (चक्रीय घेराव) प्रारूप की बात कही है, जिसमें सोपानीय अतिमहत्ता का कोई एक केन्द्रीय बिन्दु नहीं होता है। सोपानीय रूप में व्यवस्थित समूहों और इकाइयों को जोड़ने के लिये एक 'त्रिवादी' या एक तीसरे या एक मध्यस्थता करवाने वाले तत्व की आवश्यकता हो सकती है। जाति के 'घुमावदार' मॉडल द्वारा विशिष्ट सन्दर्भ में केन्द्र - सीमांत सम्बन्धों या धार्मिक-निरपेक्ष तत्वों के विभाजन को समझ सकते हैं।

इस प्रकार, डूमों को सोपान की अवधारणा का प्रवर्तक कह सकते हैं। डूमॉ के अनुसार, "एक सोपानीय सम्बन्ध का अभिप्राय दीर्घ और लघु ( बड़े और छोटे) के बीच सम्बन्ध से है, या नपे-तुले अर्थ में यह वह सम्बन्ध है जिसमें एक समाहित करता है और दूसरा समाहित होता है।" इसको स्मा ने 'केन्द्रिक सोपानों' का नाम दिया है। जाति सोपान के सिद्धान्त के अन्तर्गत समाहित करने वाले और समाहित होने वाले दोनों में पारस्परिक जुड़ाव और विरोध पाये जाते हैं। पवित्र और अपवित्र एक आधार के रूप में स्थिर रहते हैं, जिस पर यह विभाजन एक स्थायी रूप में विद्यमान रहता है।

डूमॉ द्वारा भारतीय समाज के अध्ययन में अत्यंत गहन और महत्वपूर्ण लेन के लिये टी० एन० मदान ने प्रशंसा की है। मदान के अनुसार, डूमों के लेखन में, विचार की स्पष्टता विद्वता और सरलता पाई जाती है। मदान ने लिखा है- "होमो हैरार्किकस, विचार ग्रहण, प्रारूप और क्रियान्वयन में एक असाधारण कृति है।" मदान का मत है कि श्रेणीकरण के सिद्धान्त द्वारा समग्र (समाजं) के तत्वों के समग्र के सन्दर्भ में श्रेणीकरण से व्यवस्था को पूर्ण रूप से समझने और द्विवाद के विरोध पर नियंत्रण करने में मदद प्राप्त होती है। इस तरह से प्रतीत होता है कि डूमाँ ने टालकट पार्सन्स किंग्सले डेविस और विल्बर्ट मूर द्वारा प्रतिपादित सामाजिक स्तरीकरण के उपागम का अनुसरण किया है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book